• अदालत को भ्रष्ट लोगों के खिलाफ नरमी नहीं बरतनी चाहिए भ्रष्ट अफसरों पर मामला दर्ज किया जाना चाहिए और उन्हें दोषी भी ठहराया जाना चाहिए क्योंकि भ्रष्टाचार ने शासन को प्रभावित करने वाले एक बड़े हिस्से को अपनी गिरफ्त में ले लिया है उच्चतम न्यायालय की 5 जजों बाली संवैधानिक पीठ ने एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए आगे कहा है कि जब उसके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है तो परिस्थिति जन्य साक्ष्य के आधार पर भी एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी को दोषी ठहराया जा सकता है
गुरुवार को भ्रष्टाचार निरोधक कानून के मामले में सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने भ्रष्ट लोक सेवकों पर करारा प्रहार करते हुए कहां है कि रिश्वत मांगने के दोषी ठहराए गई किसी भी भ्रष्ट लोक सेवक को दोषी ठहराने के लिए रिश्वत मांगने के सीधे सबूत की जरूरत नहीं है ऐसी मांग को प्रतिजन सबूतों से साबित किया जा सकता है
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा है कि भले ही शिकायतकर्ता की मृत्यु जाए या अन्य परिस्थितियों के कारण प्रत्यक्ष शासन उपलब्ध हो लोकसेवक को तब भी भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दोषी ठहराया जा सकता है जब यह बात साबित हो गई हो उसने रिश्वत की मांग की थी कानून की एक अदालत मांग या स्वीकृति के बारे में तथ्य का अनुमान केवल तभी लगा सकती है जब मूलभूत तत्व सिद्ध हो गए हो जस्टिस ए. एस. बोपन्ना जस्टिस अब्दुल नजीर जस्टिस बी.आर. गवई जस्टिस बी. राम सुब्रमण्यम और जस्टिस बी. वी. नागरत्न सिंपोजियम वाली सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले में 23 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की पीठ ने सत्यनारायण मूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य 2015 को सुप्रीम कोर्ट के पहले कि फैसले में असंगत था पाते हुए इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया थ जिसमें कहा गया था कि आरोपी के खिलाफ प्राथमिक साक्ष की कमी है इसलिए दोषी लोकसेवक ओवरी कर दिया जाना चाहिए