बीते 25 दिसंबर को पड़ोसी देश नेपाल में नई सरकार का गठन हुआ जिसमें की प्रधानमंत्री के रूप में पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की ताजपोशी हुई तमाम राजनीतिक अस्थिरता ओं के बीच नेपाल को नए प्रधानमंत्री के रूप में माओवादी नेता प्रचंड का नेतृत्व जरूर मिला लेकिन अस्थिरता का दौर अभी नेपाल में जारी रहने वाला है क्योंकि नेपाल में 275 सीटों की संसद में प्रचंड की केवल 32 सीटें आई है और ऐसे में गठबंधन धर्म को निभाते हुए केपी शर्मा ओली की सीपीएन (यूएमएल )के 78 सांसद कब तक प्रचंड का साथ निभाएंगे यह देखने वाली बात होगी जबकि आम चुनाव में 89 सीटें प्राप्त करने वाली शेर बहादुर देउबा की पार्टी नेपाली कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी होगी लेकिन नेपाल की गठबंधन सरकार के सामने चुनौतियां भी अनेक है सरकार बनाने के लिए जितनी जोड़-तोड़ और मुश्किलों का सामना करना पड़ा, नई सरकार के सामने चुनौतियां भी उतनी ही हैं
हालांकि, नेपाल के संविधान में प्रावधान है कि दो साल तक प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव नही लाया जा सकता है लेकिन उनका तर्क है कि अगर गठबंधन के भीतर मतभेद हों, तो अस्थिरता का ख़तरा हमेशा बना रहेगा उनके मुताबिक़, ऐसे हालात से बचने के लिए नई सरकार को अपने सहयोगियों के साथ गठबंधन करने के बाद गठबंधन की सियासी संस्कृति पर अधिक काम करना होगानेपाल में, संयुक्त सरकार बनाने की कोई परंपरा नहीं है. जैसे ही छोटी-सी बात पर कोई पार्टी असंतुष्ट होगी, सरकार गिर जाएगी या अस्थिरता के हालात पैदा होंगे.” कई अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि नेपाल की अर्थव्यवस्था पिछले साल से गंभीर संकट का सामना कर रही है हाल के सालों में, विदेश संबंधी मामलों में नेपाल की कमज़ोर मौजूदगी देखी गई है और कुछ लोगों का कहना है कि नेपाल ताक़तवर देशों के बीच संघर्ष का केंद्र बन जाएगा ये भी मानना है कि विदेश नीति में संतुलन साधना नई सरकार की एक बड़ी चुनौती है विदेश नीति में संतुलन हमेशा नेपाल के लिए एक चुनौती है और यह नई सरकार के सामने भी बनी रहेगी.” कुछ लोगों की ये भी चिंता है कि अमेरिकी सहायता परियोजना, एमसीसी के पास होने के बाद नेपाल को लेकर चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ जाएगा इन हालात में कई लोगों का मानना है कि नेपाल को अपने पड़ोसी देशों और अन्य देशों के साथ सहज संबंध बनाए रखने के लिए संतुलित नीति अपनाने की चुनौती है
नेपाल के आम चुनाव में केवल 32 सीट प्राप्त करने वाली सीपीएन( माओवादी सेंटर) की मुखिया पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने प्रधानमंत्री पद का दावा ठोकते हुए 169 सांसद किस समर्थन प्राप्त होने का दावा पेश किया है जिसमें निर्दलीय सांसद भी शामिल है नेपाल में सत्ता परिवर्तन के लिए कभी विद्रोह का रास्ता अपनाने वाले प्रचंड मायोंवादी विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए कई वर्ष अंडरग्राउंड रहे l नेपाल में वर्ष 2008 में 293 वर्ष की पुरानी राजशाही खत्म होने के बाद अब तक 10 सरकार आ चुकी है लेकिन 32 सीटें प्राप्त वाली पार्टी के मुखिया के रूप में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले प्रचंड शायद पहले व्यक्ति होंगे हालांकि प्रचंड नेपाल में तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं इससे पूर्व भी वह दो बार वर्ष 2008 नवमी तथा वर्ष 2016-17 में प्रधानमंत्री बन चुके हैं 11 दिसंबर 1954 को काशकि जिले के पोखरा के पास टिकुर पोखरी में एक साधारण परिवार में जन्मे पुष्प कमल दहल देश में 10 सालों तक विद्रोह का भी नेतृत्व कर चुके हैं जिसके लिए उन पर पड़ोसी कम्युनिस्ट वादी विचारधारा वाले देश कठपुतली होने के आरोप भी लग चुके हैं इन सब चीजों के बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचंड को नेपाल के नए प्रधानमंत्री के रूप में बधाई दी और साथ में कार्य करने का विश्वास व्यक्त किया अब देखना यह होगा कि भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा लिपुलेख में सड़क निर्माण के आव्हान को नई नेपाली सरकार किस प्रकार लेती है
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली विपक्षी सीपीएन (यूएमएल), सीपीएन (माओवादी सेंटर), राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी और अन्य छोटी पार्टियां प्रचंड के नेतृत्व में नई सरकार के गठन के लिए सहमत हो गई हैं इस बात को लेकर सहमति बनी है कि प्रचंड और ओली बारी-बारी से सरकार का नेतृत्व करेंगे जिसमें पहली बारी प्रचंड को मिलेगीसमाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार प्रचंड 2025 में प्रधानमंत्री का पद छोड़ देंगे जिसके बाद ये पद यूएमएल अध्यक्ष केपी ओली संभालेंगे प्रचंड गठबंधन सरकार के लिए सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस पार्टी के साथ चर्चा कर रहे थे. रॉयटर्स के अनुसार लेकिन नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने प्रधानमंत्री पद के लिए प्रचंड को समर्थन देने से इनकार कर दिया था जिसके बाद बातचीत आगे नहीं बढ़ पाई