समाजवादी पार्टी (सपा) के पूर्व सांसद और गैंगस्टर अतीक अहमद ने अपनी सुरक्षा के लिए बुधवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया और दावा किया कि उसे और उसके परिवार को प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड मामले में आरोपियों के रूप में गलत तरीके से ”शामिल” किया गया है और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उसे फर्जी मुठभेड़ में मारा जा सकता है। क्या वास्तविक माफिया गैंगस्टर मुख्यमंत्री योगी के उस बयान से डर गया है जिसमें कहा गया था की माफियाओं को मिट्टी में मिला दूंगा
जीरो टॉलरेंस की नीति को अपनाते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी के बयान से समस्त माफिया में दहशत व्याप्त है 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मुख्य गवाह उमेश पाल की बीते शुक्रवार को दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी साथ ही उनके दोनों गनर को गोली एवं बम मारकर गंभीर रूप से घायल किया जिसमें की एक गनर संदीप निषाद की मौके पर मौत हो गई थी इधर लखनऊ में मौजूदा विधानसभा के बजट सत्र में कानून व्यवस्था को लेकर सरकार और विपक्ष में खासी नोकझोंक हुई तभी मुख्यमंत्री योगी को माफियाओं को मिट्टी में मिला दूंगा वाला बयान देना पड़ा
कानून व्यवस्था को चुनौती देती हुई प्रयागराज की दिनदहाड़े हुई उमेश पाल की हत्या कांड की वारदात के बाद उत्तर प्रदेश का पुलिस एवं एसटीएफ की संयुक्त कार्रवाई हत्यारों के खिलाफ जारी है जिसमें कि 13 लोगों की शिनाख्त कर ली गई एवं धरपकड़ अभियान के तहत एक को मार गिराया गया इसी से अहमदाबाद केंद्रीय जेल में बंद अतीक अहमद ने अपनी याचिका में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा विधानसभा में दिये गये उस कथित बयान का हवाला दिया कि उसे ”पूरी तरह से मिट्टी में मिला दिया जायेगा” और दावा किया कि उसे और उसके परिवार के सदस्यों को ”जान का वास्तविक और प्रत्यक्ष खतरा है।” उसने कहा कि इस बात की पूरी संभावना है कि उत्तर प्रदेश पुलिस उसकी ट्रांजिट रिमांड मांगेगी और उसे अहमदाबाद से प्रयागराज ले जाने के लिए पुलिस रिमांड भी मांगेगी और उसे ”ऐसी आशंका है कि इस ट्रांजिट अवधि के दौरान फर्जी मुठभेड़ में उसे मार गिराया जाये।” उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी याचिका में 61 वर्षीय अहमद ने राज्य के उच्च पदाधिकारियों से उसके जीवन को ”खुले और प्रत्यक्ष खतरे” से बचाने के लिए उसके जीवन की रक्षा करने के निर्देश केंद्र, उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य को देने का अनुरोध किया है।
याचिका में कहा गया है, ”उमेश पाल की हत्या के बाद, विपक्ष ने सदन में आग में घी डालने का काम किया और मुख्यमंत्री को यह कहने के लिए उकसाया कि..’माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा’ और उस समय सदन में चर्चा याचिकाकर्ता पर ही चल रही थी।” याचिका में आरोप लगाया गया है, ”याचिकाकर्ता (अहमद) वास्तव में इस बात को लेकर आशंकित है कि उसे उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा किसी न किसी बहाने फर्जी मुठभेड़ में मार दिया जा सकता है, विशेष रूप से मुख्यमंत्री योगी द्वारा सदन में दिये गये बयान को देखते हुए।” बहुजन समाज पार्टी (बसपा) विधायक राजू पाल की हत्या के मुख्य गवाह उमेश पाल और उनके पुलिस सुरक्षाकर्मी संदीप निषाद की पिछले शुक्रवार को प्रयागराज के धूमनगंज इलाके में उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उमेश पाल 2005 में प्रयागराज में हुई हत्या के मामले में मुख्य गवाह था जिसमें अहमद और अन्य मुख्य आरोपी हैं। उमेश पाल हत्याकांड का एक आरोपी अरबाज सोमवार को पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया था। मुठभेड़ में धूमनगंज थाने के एसएचओ राजेश मौर्य भी घायल हो गए थे। यह याचिका उस दिन दायर की गई है जिस दिन प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) ने अहमद के एक करीबी सहयोगी के घर को ध्वस्त कर दिया है।
प्रयागराज विकास प्राधिकरण के सचिव अजीत सिंह ने कहा कि जफर अहमद के घर पर बुलडोजर चला दिया गया है। उन्होंने बताया कि अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन पहले इसी घर में रहती थी। अधिकारी ने कहा, ”उक्त मकान का निर्माण प्राधिकरण से नक्शा पास कराये बिना किया गया था और इसके संबंध में पूर्व में एक नोटिस जारी किया गया था।” इस बीच अहमद ने याचिका में उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया और कहा कि उसे और उसके परिवार के सदस्यों को कोई शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचाया जाए। अहमद ने उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य को अहमदाबाद की केंद्रीय जेल से प्रयागराज या उत्तर प्रदेश के किसी अन्य हिस्से में उसे नहीं ले जाने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया है। उसने अपने वकील को पूछताछ के दौरान उपस्थित रहने की अनुमति देने और केंद्रीय जेल अहमदाबाद से प्रयागराज ले जाने के लिए किसी भी अदालत द्वारा जारी किए गए वारंट को भी रद्द करने का अनुरोध किया है। याचिका में दावा किया गया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बिना किसी जांच के और केवल संदेह के आधार पर राज्य विधानसभा में बयान दिया था कि अहमद को ”मिट्टी में मिला दिया जायेगा।”इसमें कहा गया है, ”ऐसी परिस्थितियों में, याचिकाकर्ता भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिये गये अपने जीवन की सुरक्षा के लिए इस अदालत के समक्ष भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत वर्तमान रिट याचिका दायर करने के लिए बाध्य है।