उत्तर प्रदेश पशुधन विकास बोर्ड: एक जांच की आवश्यकता
उत्तर प्रदेश पशुधन विकास बोर्ड की स्थापना 31 अक्टूबर 1998 को महामहिम राज्यपाल के स्तर से हुई थी। बोर्ड को पशुधन विकास के लिए राज्य अभिकरण इकाई के रूप में अधिकृत किया गया था। हालांकि, पिछले 24 वर्षों में बोर्ड की स्वायत्तता को लगातार कम करने का प्रयास किया गया है।
बोर्ड के सीईओ की नियुक्ति और पदच्युति के संबंध में कई आरोप लगाए गए हैं। नवंबर 2022 में डा नीरज गुप्ता को सीईओ के पद पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने पारदर्शिता, नवाचार और डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया अपनाते हुए योजनाओं का क्रियान्वयन किया। हालांकि, उत्तर प्रदेश शासन ने डॉ गुप्ता को अनियमितताओं के आरोप में बर्खास्त कर डा पी के सिंह को सीईओ के पद पर नियुक्त किया है
इस नियुक्ति के संबंध में भी कई आरोप लगाए गए हैं। डा पी के सिंह की अर्हता परिषद के लिए जरूरी पांच विषय में से नहीं होने के बावजूद उनको स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा उत्तीर्ण किया गया। विज्ञापन में कोरिजेंडम के द्वारा आवेदक की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष की गई थी। वर्तमान विशेष सचिव देवेंद्र पांडे, पर पूर्व सीईओ डॉ नीरज गुप्ता ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं। वह डा पी के सिंह की नियुक्ति में शामिल थे और उनके साथ उनके घनिष्ठ संबंध हैं। देवेंद्र पांडे पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप भी लगाए गए हैं।
पूर्व सीईओ के अनुसार पशुपालन विभाग में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का आलम यह है कि डा सिंह ने निदेशक रोग नियंत्रण पद पर रहते हुए वेंडर और रेट फिक्सिंग कर करोड़ों रुपये की अनियमितता की। उन्होंने आगे कहा है कि विशेष सचिव श्री पांडे की टीम में वित्त नियंत्रक बृजेश कुमार, संयुक्त निदेशक डॉ संजय श्रीवास्तव और लेखाधिकारी ऋतु सिंह शामिल हैं, जो मिलकर करोड़ों रुपये के गौशाला के बजट का भी अपव्यय कर रहे हैं।
इसके अलावा, पशुधन विभाग में दवाइयों की खरीदारी में भी अनियमितताएं सामने आई हैं। आरोप है कि दवाइयों की खरीदारी में बाजार के मूल्य से कई गुना अधिक मूल्य पर खरीद की जा रही है। यह भी आरोप है कि कुछ कंपनियों को जानबूझकर टेंडर देकर लाभ कमाया जा रहा है। इसी संदर्भ में सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए प्रदेश के कई समाजसेवी संस्थाओं ने लखनऊ प्रेस क्लब सहित प्रदेश के तमाम बड़े महानगरों में प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से विभाग पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं
इसके अलावा, आशंका जताई जा रही है कि कुछ दवाइयां एक्सपायरी डेट के बाद भी आपूर्ति की गई हैं। यह एक गंभीर मामला है और बोर्ड को मनमानी ढंग से चलते हुए यह किसकी इच्छा पूर्ति की जा रही है केंद्र सरकार से आने वाली हर वर्ष की वित्तीय बजट को किस प्रकार भ्रष्टाचार की बेदी पर चढ़ाया जा रहा है आखिर इसके पीछे कौन लोग हैं इसकी जांच करना आवश्यक है। यदि ऐसा हुआ है, तो यह जानना आवश्यक है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है और उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी।
इन आरोपों की जांच करना आवश्यक है और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह इस मामले में पारदर्शी जांच कराए और दोषियों को सजा दिलाए। साथ ही, पशुधन विभाग में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए। जिससे कि केंद्र में बैठी मोदी सरकार से आया हुआ पैसा भ्रष्टाचार की भेंट न चढ सके और उत्तर प्रदेश के पशुओं एवं पशुपालकों को योजना का लाभ मिल सके