सिख धर्म के नानकशाही कैलेंडर के अनुसार गुरु गोविंद सिंह जयंती प्रकाश पर्व के रूप में जनवरी और दिसंबर के महीने में मनाई जाती है मुगलों के अत्याचारों से बचाने के लिए श्री गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी गुरु गोविंद सिंह सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर सिंह के सुपुत्र थे उनका जन्म पटना में हुआ था उस समय श्री गुरु तेग बहादुर सिंह जी असम में थे जब वह वहां से वापस लौट कर आए तो गुरु गोविंद सिंह जी 4 साल के हो चुके थे कहा जाता है कि जब श्री गुरु तेग बहादुर डी असम की यात्रा पर थे उससे पहले ही होने वाले बच्चे का नाम गोविंद राय रख दिया गया था जिसके कारण उन्हें बचपन में गोविंद राय कहा जाता था गुरु गोविंद राय बचपन से ही अपनी उम्र के बच्चों से बिल्कुल अलग थे जब उनके साथी खिलौने से खेलते थे और गुरु गोविंद सिंह तलवार कटार धनुष से खेलते थे पटना साहिब में ही गुरु गोविंद सिंह ने संस्कृत गुरुमुखी बृज अवधि अरबी और फारसी की शिक्षा प्राप्त की थी इस समय भी पटना साहिब के गुरुद्वारे को बोनी साहेब के नाम से जाना जाता है वहां पर गुरु गोविंद सिंह की खड़ा हूं कटार कपड़े और छोटा सा धनुष बाण रखा हुआ है जब गुरु गोव जी छोटे थे उनके बचपन में ही गुरु तेग बहादुर जी ने उनकी शिक्षा के लिए आनंदपुर में समुचित व्यवस्था की थी जिसके कारण वह थोड़े समय में कई भाषाओं के महारथी हो गए थे संवत 1731 जब मुगल शासक औरंगजेब के अत्याचार बढ़ते चले जा रहे थे वह कश्मीरी पंडितों पर हो रहे अत्याचार के कारण बहुत चिंतित थे कश्मीरी पंडितों का एक दल गुरु तेग बहादुर जी से मिला और अपनी ऊपर हो रहे जुल्म की कहानी बताइए तब सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने उनको अपनी शरण प्रदान की कश्मीरी हिंदुओं की बात सुनकर गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने कहा कि हमारे हिंदू धर्म की रक्षा के लिए किसी महापुरुष की आवश्यकता है इस बात को सुनकर बालक गोविंद राय ने अपने पिता से कहा कि इस संसार में आप से बड़ा महापुरुष कौन हो सकता है जब गुरु गोविंद सिंह ने यह बात कही उस समय उनकी उम्र महज 9 वर्ष की थी इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण मिलते हैं जब किसी बालक ने अपने पिता को ही धर्म की रक्षा के लिए वरदान होने की प्रेरणा दी हो गुरु तेग बहादुर सिंह जी के शरीर छोड़ने के पश्चात 1733 को गोविंदराव जी गद्दी पर बैठे तब तक काफी लोग उन्हें चमत्कारी पुरुष मानते थे
गुरु गोविंद सिंह सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में गुरु ग्रंथ साहब को मान्यता दी और सिखों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब का ही निर्देश अंतिम निर्देश होने की बात रखी
सिख धर्म के 10 में गुरु ग्रुप में प्रसिद्ध गुरु गोविंद सिंह बचपन से ही बहुत ज्ञानी साहसी वीर दया धर्म की प्रतिमूर्ति थे खालसा पंथ की स्थापना कर गुरु गोविंद सिंह ने सिख धर्म के लोगों को धर्म रक्षा के लिए हथियार उठाने को प्रेरित किया पूरी उम्र दुनिया को समर्पित करने वाले श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने त्याग और बलिदान का जो उदाहरण देश और दुनिया को बताया अद्वितीय है उनकी कहानी को जानकर आप का शीष भी उनके चरणों में झुक जाएगा
पंत धर्म के संस्थापक गुरु गोविंद सिंह जी जन्मजात योद्धा थे लेकिन वह कभी भी अपनी सत्ता को बढ़ाने या किसी राज्य पर काबिज होने के लिए नहीं लड़े उन्हें राजाओं के अन्याय और अत्याचार से गोल पीड़ा होती थी आम जनता या वर्ग विशेष पर अत्याचार होते देख वह किसी से भी राजा से लोहा लेने को तैयार हो जाते थे चाहे वह शासक मुगल हो या हिंदू यही वजह रही कि गुरु गोविंद सिंह जी ने औरंगजेब के अलावा गढ़वाल नरेश शिवालिक क्षेत्र के कई राजाओं के साथ तमाम युद्ध किया गुरु गोविंद सिंह जी की वीरता को यूं बयां करती है यह पंक्तियां सवा लाख से एक लड़ाऊं चिड़ियों से मैं बाज लड़ऊं तवे गोविंद सिंह नाम कहाउl
श्री गुरु गोविंद सिंह द्वारा बनाया गया खालसा पंथ आज भी सिख धर्म का प्रमुख पंथ है जिस से जुड़ने वाले जवान लड़के को अनिवार्य रूप से केस गंगा कक्षा कड़ा और कृपाण धारण करनी पड़ती है खालसा पंथ के लोग वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी का फतेह नारा बोल कर आज भी वाहेगुरु के लिए सब कुछ निछावर करने को तत्पर रहते हैं गुरु गोविंद सिंह को युद्ध कला के साथ-साथ संगीत और वह एक महान कवि भी थे जब शब्द कीर्तन गाते थे काव्य रचना के माध्यम से 10वी का मन मोह लेते थे उनकी कई बात यंत्रों में इतनी गहरी रुचि थी कि उन्होंने अपने लिए खास तौर पर कुछ नए और अनोखे बाद यंत्रों का आविष्कार कर डाला गुरु गोविंद सिंह द्वारा बनाई गई क्या और दिलरुबा वाद्ययंत्र आज भी संगीत के क्षेत्र में जाने जाते हैं भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहने का संदेश देने वाले गुरु गोविंद सिंह जी को युद्ध कला में निपुणता हासिल थी उन्होंने धर्म की रक्षा की खातिर और राष्ट्र की भलाई के लिए सर्वस्व निछावर कर दिया था अपने पिता मां और अपने चारों बेटों को उन्होंने खालसा के नाम पर कुर्बान कर दिया गुरु ग्रंथ साहिब शिक्षकों का यह सबसे पवित्र ग्रंथ है गुरु गोविंद सिंह ने 7 अक्टूबर 1708 में महाराष्ट्र के नांदेड़ में अपना शरीर छोड़ा था आज भी हम गुरु गोविंद सिंह जी को राष्ट्र और मानव की भलाई के लिए उनके दिए गए बलिदान के लिए उनके त्याग के लिए याद करके उनको श्रद्धांजलि देते हैं वह एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनमें ना केवल युद्ध कला की प्रवीणता हासिल थी बल्कि महान बलिदानी भाषा के जानकार संगीत शिक्षा में निपुण और सरल हृदय थे ऐसे महान व्यक्तित्व को याद करके हमारा हृदय उनके प्रति श्रद्धा दिए गए बलिदान से भर आता है आने वाली प्रकाश पर्व पर उनकी जयंती के उपलक्ष में हमें अपने बच्चों को अपने परिवार के प्रति के सदस्यों को उनके बलिदान और त्याग के विषय में बतलाना चाहिए