नेपाल में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों ने उग्र रूप धारण किया, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट से लेकर कई सरकारी इमारत में तोड़फोड़ के बाद आग के हवाले किया केपी शर्मा ओली ने दिया इस्तीफा
विरोध प्रदर्शन की आड़ में आंदोलन को हाईजैक कर लिया गया है और किसी गहरी साजिश के तहत पूरे देश को हिंसा में झोक दिया गया है जो कि भारत के लिए निश्चित तौर पर एक चिंता का विषय है काठमांडू नेपाल राजनीतिक दुनिया में पिछले दो दिनों में ऐसा तूफ़ान आया है कि प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को सत्ता छोड़नी पड़ी. विशेष तौर पर केपी शर्मा ओली की सरकार जब सत्ता में आई तभी से राजनीतिक अस्थिरता का दौर नेपाल में जारी है देश भर में लाखों युवा यानी जेन ज़ी के नेतृत्व में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन के समक्ष भ्रष्टाचार के आरोपों से गिरी वर्तमान नेपाली सरकार टिक ना सकी
काठमांडू में बेकाबू भीड़ ने संसद भवन पर हमला कर आग लगा दी, एयरपोर्ट के आसपास धुआं छा गया और हिंसा ने तूल पकड़ लिया. पुलिस और सेना के बीच झड़पें हुईं, कर्फ्यू लगा, लेकिन प्रदर्शनकारियों का गुस्सा कम नहीं हुआ. आखिरकार, सेना ने काठमांडू का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया, जबकि सेना प्रमुख ने प्रदर्शनकारियों से शांति बनाए रखने की अपील की.
क्या नेपाल की आग की लपटें भारत पर भी असर डाल सकती हैं
हिंसक होते आंदोलनकारी का नेतृत्व अब किसके हाथ में है जहां तक बात सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की थी कब तक नेपाल का अंदरूनी मामला कहकर भारत के लिए विशेष चिंता का सबब नहीं था लेकिन अब हिंसक आंदोलन ने जिस तरीके का उग्र रूप धारण किया है वह हमारे पड़ोसी देश नेपाल के साथ साथ भारत के लिए भी उचित नहीं है नेपाल के राजनीतिक इस संकट का असर सिर्फ वहां तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पड़ोसी भारत के लिए भी चिंता का विषय बन सकता है. भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. नेपाल का लगभग दो-तिहाई व्यापार भारत के साथ होता है, लेकिन व्यापार में भारी असंतुलन है. नेपाल भारत से कई गुना ज्यादा सामान आयात करता है, जबकि उसका निर्यात कम है. इससे नेपाल की अर्थव्यवस्था कमजोर होती जा रही है. खासकर, भारतीय मानक ब्यूरो से प्रमाणन की लंबी प्रक्रिया ने नेपाली उत्पादों के निर्यात को भी रोक रखा है.
नेपाल ने 2024-25 में 164 देशों के साथ व्यापार किया, लेकिन ज्यादातर देशों के साथ व्यापार घाटा ही दर्ज हुआ. भारत के साथ नेपाल का व्यापार घाटा सबसे बड़ा है.नेपाल ने भारत को करीब 225 अरब रुपये का सामान बेचा, जबकि भारत से 1,071 अरब रुपये का सामान मंगाया. इसी तरह चीन के साथ भी नेपाल का भारी व्यापार घाटा है. ऐसे में नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता आर्थिक कमजोरी को और बढ़ा सकती है, जिसका असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा.
अमेरिका के साथ तनाव के बीच भारत के लिए बड़ी चुनौती
अभी अमेरिका के साथ रिश्ते तनाव में हैं और ऐसे वक्त में भारत अपनी एक्सपोर्ट यानी सामान विदेश भेजने की क्षमता बढ़ाना चाहता है. लेकिन नेपाल में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल इस कोशिश में बड़ी बाधा बन सकती है. इलाके में अस्थिरता से निवेश कम होता है और व्यापार भी प्रभावित होता है. नेपाल की अर्थव्यवस्था पहले से कमजोर है, और ये राजनीतिक संकट उसे और कमजोर कर सकता है.
नेपाल को अपनी ज़रूरत की कई चीजें भारत से ही मिलती हैं. इनमें दवाइयां, लोहे की चीजें, मशीनें, पेट्रोल-डीजल जैसे ईंधन और चावल-सब्जी जैसे खाने-पीने के सामान शामिल हैं. भारत और नेपाल के बीच अच्छा व्यापार चलता है क्योंकि नेपाल ज्यादातर सामान भारत से ही खरीदता है. दोनों देशों का आर्थिक रिश्ता काफी मजबूत है. यहां तक की नेपाल अपनी ऊर्जा और ईंधन की ज़रूरत भी भारत से पूरी करता है. पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की मांग सबसे ज्यादा है. इसके अलावा नेपाल प्लास्टिक, रबर, कपड़े और कागज जैसे कच्चे माल भी भारत से मंगवाता है.
लेकिन अब नेपाल में अशांति और राजनीतिक संकट के कारण सीमा पार व्यापार प्रभावित हो रहा है. बॉर्डर पर कड़ी सुरक्षा और रुकावटें सामान के आवागमन में दिक्कतें पैदा कर रही हैं. इससे भारत से नेपाल तक सामान सप्लाई करने वाले उद्योगों को परेशानी हो सकती है. साथ ही निवेशकों में डर बढ़ने लगा है, जिससे नेपाल में आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ सकती हैं. इससे भारत के व्यापारिक हितों को भी नुकसान हो सकता है.