या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः
मानव जन्म का उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति है जोकि ज्ञान एवं भक्ति से साध्य
जैसे नेत्र रहते हुए भी लोग रात्रि में वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते हैं परंतु दीपक लाने पर वे अपना रास्ता स्पष्ट देख लेते हैं इसी प्रकार वेद पाठ ज्ञान एवं त्याग तपस्या अथवा यज्ञ कर्मों के बल पर मुझे देख पाना असंभव है जब तक भक्ति का प्रकाश नहीं हो जोधपुर से योगियों की सेवा करता है वह मेरा अत्यंत भक्त है और जो विशुद्ध ज्ञान एवं परमानंद से युक्त है उसके हाथ की हथेली में मुक्ति रखी हुई है मात्र तर्कों से तथा कृतियों के अध्ययन से वासनाओं से परिपूर्ण इस माया का नाश कैसे हो सकता है यह कभी भी संभव नहीं है केवल परम ज्ञान से ही इसका विनाश किया जा सकता है तथा उसके उपरांत उसके पुणे लौटने का कोई भेद नहीं होता मैं ही यह शरीर हूं ऐसा विचार भ्रम है अविद्या है तथा यही भ्रम की जननी है मैं शरीर नहीं हूं मैं आत्मा हूं ऐसा अनुभव विद्या है तथा तथा जब तुम नेति नेति की प्रक्रिया से परमात्मा को जानने में समर्थ होते हैं तभी तुम समस्त कर्मों का त्याग कर सकते हो अन्यथा तुम्हें अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना होगा जिस जगह साक्षात्कार होता है कि शरीर आत्मा इंद्रियां से पृथक है उसी क्षण माया का जो संसार का मूल कारण है विनाश हो जाता है