October 22, 2024 |

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पुरुषों से विहीन हो रही पृथ्वी को पुरातन व्यवस्था से बचाया जा सकता है

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क्या पुरुषों से विहीन हो जाएगी पृथ्वी इस डरावनी सच का खुलासा करते हुए एक स्टडी में दावा किया गया है कि इंसानों का वाई क्रोमोसोम धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. यानी एक समय ऐसा आएगा, जब लड़के पैदा नहीं होंगे. सिर्फ लड़कियां होंगी. अब अगर लड़के नहीं पैदा होंगे तो उनकी जगह किस तरह का जीव आएगा. क्या कोई नया सेक्स जीन विकसित होगा. यह एक बड़ा सवाल है. हाल ही में प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस जर्नल में जर्नल में इस विषय पर एक रिसर्च पेपर छपा है. जिसमें नरों को पैदा करने वाले जीन्स के खत्म होने पर स्टडी की गई है पिछले 10000000 साल में ऐसा नहीं हुआ जो अब हो रहा है पूरी दुनिया में जीव जंतुओं की 10 लाख से ज्यादा प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है  वजह है इंसान और उसका प्राकृतिक तथा आदिकालीन व्यवस्था मैं हस्तक्षेप और इसी वजह से प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसी विकट परिस्थिति हमारे सामने हैं जिस पर दुनिया भर के वैज्ञानिक रिसर्च में जुटे हैं आइए अब ले चलते हैं आपको हमारी पुरातन व्यवस्था पर आखिर हमारी ऋषि मुनि उस पुरातन व्यवस्था में ऐसा क्या बतलाती थी जो आज की व्यवस्थाओं से भिन्न है और आज की वैज्ञानिक अध्ययन भी हमारी पुरातन व्यवस्थाओं को ही पुष्ट करता है मीडिया विद यू की एक रिपोर्ट से समझते हैं…….

क्या आप जानते हैं कि हर बार जब आप पूजा के लिए बैठते हैं, तो मंदिर के पुजारी आपसे आपका गोत्र क्यों पूछते हैं? GOTRA (आनुवांशिकी) के पीछे का विज्ञान, कुछ भी नहीं है, लेकिन आज इसे GENE ~ मैपिंग के नाम से जाना जाता है।गोत्र प्रणाली क्या है? हमारे पास गोत्रों की यह व्यवस्था क्यों है?हम विवाह तय करने के लिए अपने गोत्र के ज्ञान को इतना महत्वपूर्ण क्यों मानते हैं पिता का गोत्र पुत्र ही क्यों धारण करे, पुत्री क्यों नहीं ?

बेटी की शादी के बाद उसका गोत्र कैसे/क्यों बदलता है? तर्क क्या है?वास्तव में यह एक अद्भुत और प्राचीन अनुवांशिकी विज्ञान है जिसका हम पालन करते हैं। आइए हमारे महान गोत्र प्रणालियों के पीछे आनुवंशिकी के विज्ञान को देखें।गोत्र शब्द संस्कृत के दो शब्दों, गऊ (अर्थ, गाय) और त्राही (अर्थ, शेड) से बना है।

गोत्र का अर्थ है गौशाला। गोत्र एक विशेष पुरुष वंश की रक्षा करने वाली गौशाला की तरह है। हम 8 महान ऋषियों (सप्त ऋषि + भारद्वाज ऋषि) के वंशज मानकर अपने पुरुष वंश/गोत्र की पहचान करते हैं। अन्य सभी गोत्र इनसे ही विकसित हुए हैं। जैविक रूप से, मानव शरीर में 23 जोड़े गुणसूत्र होते हैं (एक पिता से और एक माता से)। इन 23 जोड़ियों में सेक्स क्रोमोजोम नामक एक जोड़ी होती है, जो व्यक्ति के लिंग का निर्धारण करती है। गर्भाधान के दौरान, यदि परिणामी कोशिका XX गुणसूत्र है, तो संतान लड़की होगी। अगर XY है तो लड़का होगा।XY में – X माँ से है और Y पिता से है।

इसमें Y अद्वितीय है और यह मिश्रण नहीं करता है। तो XY में Y, X को दबा देगा और बेटे को Y क्रोमोसोम मिल जाएगा। Y एकमात्र गुणसूत्र है जो केवल पुरुष वंश के बीच ही पारित होता है। (पिता पुत्र से और पौत्र से)। महिलाओं को वाई क्रोमोसोम कभी नहीं मिलता। इसलिए, वंशावली की पहचान करने में वाई गुणसूत्र आनुवंशिकी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चूंकि महिलाओं को वाई क्रोमोसोम कभी नहीं मिलता है, इसलिए महिला का गोत्र उसके पति का माना जाता है, और इसलिए उसके विवाह के बाद बदल जाता है।

ये 8 ऋषियों के 8 अलग-अलग Y गुणसूत्र हैं। यदि हम एक ही गोत्र से हैं, तो इसका अर्थ है कि हम एक ही मूल पूर्वज से हैं।

एक ही गोत्र के बीच विवाह से आनुवंशिक विकार होने का खतरा बढ़ जाएगा क्योंकि एक ही गोत्र Y गुणसूत्र में क्रॉसओवर नहीं हो सकता है, और यह दोषपूर्ण कोशिकाओं को सक्रिय करेगा।अगर ऐसा ही चलता रहा तो इससे वाई क्रोमोजोम का आकार और ताकत कम हो जाएगी जो पुरुषों के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है।

यदि इस दुनिया में कोई Y गुणसूत्र मौजूद नहीं है, तो यह पुरुषों के विलुप्त होने का कारण बनेगा। और इसी को पुष्ट करता वह दवा भी हे जो वैज्ञानिकों ने एक समुचित अध्ययन के बाद प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी आफ साइंस जनरल में छपा है

गोत्र प्रणाली इस प्रकार हमारे महान महर्षियों द्वारा अनुवांशिक विकारों से बचने और वाई गुणसूत्र की रक्षा करने के प्रयास के लिए तैयार की गई एक प्राचीन विधि है।हमारे महर्षियों द्वारा अद्भुत जैव-विज्ञान। हमारी विरासत निर्विवाद रूप से सबसे महान है। हमारे ऋषियों ने “जीन मैपिंग” हजारों साल पहले सुलझा ली थी। अपने  पूर्वजों पर गर्व करें, वे हमसे सबसे उन्नत थे।

यही वजह है कि आज के वैज्ञानिकों का दावा कि करोड़ों वर्षों मैं धीरे-धीरे अपना वजूद खो  देगा बाई क्रोमोसोम के कारण ही आने वाले समय में पृथ्वी पुरुषों से विहीन हो जाएगी किस से बचने के लिए हमको हमारी आदिकालीन पुरातन व्यवस्थाओं और मान्यताओं पर लौटना  होगा


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