इस वर्ष गणेश चतुर्थी पर बन रहा है विशेष संजोग सिद्धिविनायक की पूजा का मिलेगा कई गुना लाभ, सनातन धर्म के प्रथम पूज्य देव को कैसे मनाए एवं पूजा की क्या-क्या विधियां है विस्तार से जानकारी हासिल करते हैं नेमीशरण सीतापुर से आचार्य श्री नारायण दास दीक्षित जी से, आचार्य नारायण दास दीक्षित ने मीडिया की यू से बात करते हुए पूजा की निम्न विधि बताई है
मध्याह्नव्यापिनी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी
गणेशजी का जन्म भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न में हुआ था। उस समय सोमवार का दिन, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न और अभिजित मुहूर्त था। गणेशजी के जन्म के समय सभी शुभग्रह कुंडली में पंचग्रही योग बनाए हुए थे।
इस वर्ष यह उत्सव|पर्व|त्यौहार 19 सितम्बर 2023, दिन भौमवार (मंगलवार) को मनाया जाएगा। स्वाति नक्षत्र तथा अभिजीत मुहूर्त युक्त मध्याह्न गणेश पूजा का समय = 11:49 से 12:38 बजे होगा।
वैसे तो भविष्य पुराण में सुमन्तु मुनि का कथन है•••
“#न_तिथिर्न_च_नक्षत्रं_नोपवासो_विधीयते ।
#यथेष्टं_चेष्टतः_सिद्धिः_सदा_भवति_कामिका ।।”
अर्थात~ भगवान गणेश की आराधना में किसी तिथि, नक्षत्र या उपवासादि की अपेक्षा नहीं होती। जिस किसी भी दिन श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान गणेश की पूजा की जाय तो वह अभीष्ट फलों को देनेवाली होती है।
☝🏻 तथापि गणेश जी के प्राकट्योत्सव पर की जाने वाली उनकी पूजा का विशेष महत्व है। तभी तो भविष्यपुराण में ही सुमन्तु मुनि फिर से कहते हैं की•••
“#शुक्लपक्षे_चतुर्थ्यां_तु_विधिनानेन_पूजयेत् ।
#तस्य_सिध्यति_निर्विघ्नं_सर्वकर्म_न_संशयः ।।
#एकदन्ते_जगन्नाथे_गणेशे_तुष्टिमागते ।
#पितृदेवमनुष्याद्याः_सर्वे_तुष्यन्ति_भारत ।।”
अर्थात~ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को उपवास कर जो भगवान गणेश का पूजन करता हैं, उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं और सभी अनिष्ट दूर हो जाते हैं। श्रीगणेशजी के अनुकूल होने सभी जगत अनुकूल हो जाता हैं। जिसपर एकदन्त भगवान गणपति संतुष्ट होते हैं, उसपर देवता, पितर, मनुष्य आदि सभी प्रसन्न रहते हैं।
☝🏻 व्रतराज ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को सिद्धिविनायक व्रत बताया है। आज प्रातःकाल सफ़ेद तिल मिश्रित जल से स्नान करना चाहिये और मध्याह्न में गणेश पूजन करना चाहिये।
👉🏻 पार्थिव गणपति पूजन से पूर्व सङ्कल्प (व्रतसार के अनुसार)
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मासपक्षाद्युल्लिख्य ममेह जन्मनि जन्मान्तरे च पुत्रपौत्रधनविद्याजययशः स्त्रीप्राप्त्यर्थमायुष्याभिवृद्धयर्थं
च सिद्धिविनायकप्रीत्यर्थं यथाज्ञानेन पुरुषसूक्तपुराणोक्त्यमंत्रैध्यानावाहनादिषोडशोपचारैः पञ्चामृतैः
सह पार्थिवगणपतिपूजनं करिष्ये।
अर्थात~ मास पक्ष आदि का उल्लेख करके कहना चाहिये कि मेरे इस जन्म और जन्मान्तरों में पुत्र, पौत्र, धन, विद्या, जय, यश और स्त्री की प्राप्ति के लिये और आयुष्य की वृद्धि के लिये और सिद्धिविनायक की प्रसन्नता के लिये जैसा मुझे ज्ञान है उसके अनुसार पुरुषसूक्त और पुराण के कहे हुये मन्त्रों से ध्यान आवाहन और षोडशोपचार के साथ पञ्चामृत से पार्थिव गणपति का पूजन मैं करूँगा।
☝🏻 भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को दो प्रकार की गणेश प्रतिमा पूजन का महत्व है, इनमें से कोई भी एक चुन लें
👉🏻 मिट्टी की बनी गणेश प्रतिमा (पार्थिव)
👉🏻 आक की जड़ से बनी गणेश प्रतिमा
📖 शिवपुराण के अनुसार पार्थिव प्रतिमा का पूजन सदा सम्पूर्ण मनोरथों को देनेवाला है तथा दुःख का तत्काल निवारण करनेवाला है•••
“सदा सर्वार्थदायकम्, सद्यो दुःखस्य शमनं शृणुत प्रब्रवाम वः”
☝🏻 पार्थिव मूर्ती की पूजा अकाल मृत्यु को हरने वाली तथा काल और मृत्यु का भी नाश करने वाली है। यह शीघ्र ही स्त्री, पुत्र और धन-धान्य को प्रदान करने वाली है। इसलिये पृथ्वी आदि की बनी हुई देवप्रतिमाओं की पूजा इस भूतल पर अभीष्टदायक मानी गयी है, निश्चय ही इसमें पुरुषों का और स्त्रियों का भी अधिकार है।
#अपमृत्युहरं_कालमृत्योश्चापि_विनाशनम् ॥
#सद्यः_कलत्रपुत्रादिधनधान्यप्रदं_द्विजाः ॥३॥
#अन्नादिभोज्यं_वस्त्रादि_सर्वमुत्पद्यते_यतः ।
#ततो_मृदादिप्रतिमापूजाभीष्टप्रदा_भुवि ॥
#पुरुषाणां_च_नारीणामधिकारोऽत्र_निश्चितम् ।
☝🏻 गणेशपुराण उपासना खण्ड के अनुसार••• जिस स्त्री और पुरुष से पार्थिव गणेश जी की मूर्ति पूजी गयी है तो वो एक भी उसकी कार्यसिद्धि करती है धन पुत्र पशुओं को भी देती है।
यथा•••
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#पार्थिवी_पूजिता_मूर्तिः_स्त्रिया_वा_पुरुषेण_वा ।
#एका_ददाति_सा_काम्यं_धनपुत्रपशूनपि ॥
☝🏻पूजन विधि में सर्वप्रथम एकाग्र चित्त से सर्वानन्दप्रदाता सिद्धिविनायक का ध्यान करें•••
ध्यानं—–
एकदन्तं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं चतुर्भुजं।
पाशांकुशधरं देवं ध्यायेत् सिद्धिविनायकं॥
ध्यायेद्देवं महाकायं तप्तकांचन सन्निभं।
दन्ताक्षमाला परशु पूर्णमोदक हस्तकं॥
मोदकासक्त तुंडाग्रमेकदंतं विनायकं।
सिद्धिविनायकाय नमः ध्यायामि॥
☝🏻 षोडशोपचार पूजन के उपरान्त श्रद्धा और भक्तिपूर्वक उनके इक्कीस नाम लेकर इक्कीस पत्ते समर्पित करें।
👉🏻 ‘सुमुखाय नमः’ – शमीपत्र,
👉🏻 ‘गणाधीशाय नमः’ – भंगरैया का पत्ता,
👉🏻 ‘उमापुत्राय नमः’ – बिल्वपत्र,
👉🏻 ‘गजमुखाय नमः’ – दूर्वादल,
👉🏻 ‘लम्बोदराय नमः’ – बेर का पत्ता,
👉🏻 ‘हरसूनवे नमः’ – धतूरे का पत्ता,
👉🏻 ‘शूर्पकर्णाय नमः’ – तुलसीदल,
👉🏻 ‘वक्रतुण्डाय नमः’ – सेम का पत्ता,
👉🏻 ‘गुहाग्रजाय नमः’ – अपामार्ग का पत्ता,
👉🏻 ‘एकदन्ताय नमः’ – वनभंटा या भटकटैया का पत्ता,
👉🏻 ‘हेरम्बाय नमः’ – सिंदूर (सिंदूरचूर्ण या सिंदूर वृक्ष का पत्ता),
👉🏻 ‘चतुर्होत्रे नमः’ – तेजपात,
👉🏻 ‘सर्वेश्वराय नमः’ – अगस्त्य का पत्ता,
👉🏻 ‘विकटाय नमः’ – कनेर का पत्ता,
👉🏻 ‘हेमतुंडाय नमः’ – अश्मातपत्र या कदलीपत्र,
👉🏻 ‘विनायकाय नमः’ – आक का पत्ता,
👉🏻 ‘कपिलाय नमः’ – अर्जुन का पत्ता,
👉🏻 ‘वटवे नमः’ – देवदारु का पत्ता,
👉🏻 ‘भालचन्द्राय नमः’ – मरुआ का पत्ता,
👉🏻 ‘सुराग्रजाय नमः’ – गान्धारी पत्र,
👉🏻 ‘सिद्धिविनायकाय नमः’ – केतकी पत्र।
☝🏻 21 लड्डू, 21 दूर्वा तथा 21 लाल पुष्प (यदि संभव हो तो गुड़हल) अर्पित करें।
☝🏻 श्रीगणेश जी को दूर्वा अत्यधिक प्रिय है। उसमें भी 21 नरकों से बचाव के लिए 21 दूर्वा को उनको चढ़ाकर व्यक्ति अपने को कष्ट से बचा लेता है। दूर्वा श्याम और सफेद दोनों होती है। दूर्वा नरकनाशक, बंशवर्धक,
आयुवर्धक, तेजवर्धक होती है –
यथा•••
#हरिता_श्वेतवर्ना_वा_पंच_त्रिपत्र_संयुता: ।
#दूर्वांकुरा_मया_दत्ता_एकविंशतिः_सम्मिताः ॥
👉🏻 महर्षि कौण्डिन्य और उनकी पत्नी आश्रया ने दूर्वा से भगवान गणेश की पूजाकर उनका दर्शन प्राप्त किया था। शमी और मंदार के पुष्प भी गणेश जी को प्रिय हैं।
📙 गणेश पुराण उपासनाखण्ड के अनुसार••• गणेश चतुर्थी को गणेश सहस्त्रनाम पाठ और प्रत्येक नाम से पृथक दूर्वा समर्पित कर पूजा उसके बाद तर्पण और अष्टद्रव्य से बने हव्य के हवन करने का अत्यधिक फल है।
जिससे धन, धान्य, ऐश्वर्य, विजय और यश प्राप्त होता है।
यथा•••
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#नभस्ये_मासि_शुक्लायां_चतुर्थ्यां_मम_जन्मनि ।
#दूर्वाभिर्नामभिः_पूजां_तर्पणं_विधिवच्चरेत् ॥
#अष्टद्रव्यैर्विशेषेण_कुर्याद्भक्तिसुसंयुतः ।
#तस्येप्सितं_धनं_धान्यमैश्वर्यं_विजयो_यशः ॥
📝 पद्मपुराण सृष्टिखण्ड में आया है••• कि चतुर्थी को लिङ्ग में अथवा प्रतिमा में गणेश जी की पूजा करके रात्रि में भोजन करना चाहिये।
यथा•••
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#नक्ताहारश्चतुर्थ्यां_तु_पूजयित्वा_गणाधिपं ।
#लिंगे_वा_प्रतिमा_चित्रे_देवः_पूज्यो_भवेद्यदि ॥
☝🏻 तदोपरान्त स्तुति करें•••
गणाधिप नमस्तुभ्यं सर्वविघ्नप्रशांतिद, उमानंदप्रद प्राज्ञ त्राहि मां भवसागरात्।
हरानंदकरध्यान ज्ञानविज्ञानद प्रभो, विघ्नराज नमस्तुभ्यं प्रसन्नो भव सर्वदा॥
👉🏻 व्रत करके इस प्रकार स्तुति से पूजा करने से व्यक्ति सब पापों से छूटकर देवलोक में जाकर पूजित होता है।
☝🏻 उसके बाद गणेश जी का 12 नाम का स्तोत्र बताया है जिसको प्रातःकाल पढ़ने से सम्पूर्ण विश्व उसके वश में हो जाता है। कोई विघ्न नहीं होता। बड़े बड़े प्रेत भी शान्त हो जाएं। कोई रोग नहीं हो और सभी पापों से छूटकर अक्षय स्वर्ग प्राप्त हो।
ॐनमो गणपतये मंत्र एष उदाहृतः, गणपतिर्विघ्नराजो लंबतुंडो गजाननः।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिपः, विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः॥
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्, विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्क्वचित्।
महाप्रेताश्शमं यांति पीड्यते व्याधिभिर्न च, सर्वपापाद्विनिर्मुक्तो ह्यक्षयं स्वर्गमश्नुते॥
📕 गीताप्रेस व्रत परिचय पुस्तक में आया है आज पूजा के अन्त में घृतपाचित 21 मोदक अर्पण करके
‘विघ्रानि नाशमायान्तु सर्वाणि सुरनायक ।
कार्यं मे सिद्धिमायातु पूजिते त्वयि धातरि ॥’
से प्रार्थना करे और मोदकादि वितरण करके एक बार भोजन करे ।
🔥 अग्निपुराण के अनुसार•••
भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को व्रत करनेवाला शिवलोक को प्राप्त करता है।
📗 भविष्यपुराण, ब्राह्मपर्व के अनुसार•••
मासि भाद्रपदे शुक्ला शिवा लोकेषु पूजिता ।
तस्यां स्नानं तथा दानमुपवासो जपस्तथा ।
क्रियमाणं शतगुणं प्रसादाद्दन्तिनो नृप ॥
गुडलवणघृतानां तु दानं शुभकरं स्मृतम् ।
गुडापूपैस्तथा वीर पुण्यं ब्राह्मणभोजनम् ॥
यास्तस्यां नरशार्दूल पूजयन्ति सदा स्त्रियः ।
गुडलवणपूपैश्च श्वश्रूं श्वसुरमेव च ॥
ताः सर्वाः सुभगाः स्युर्वे१ विघ्रेशस्यानुमोदनात् ।
कन्यका तु विशेषेण विधिनानेन पूजयेत् ॥
अर्थात~ भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी का नाम ‘शिवा’ हैं, इस दिन जो स्नान, दान उपवास, जप आदि सत्कर्म किया जाता हैं, वह गणपति के प्रसाद से सौ गुना हो जाता हैं। इस चतुर्थी को गुड़, लवण और घृत का दान करना चाहिये, यह शुभकर माना गया है और गुड़ के अपूपों (मालपुआ) से ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये तथा उनकी पूजा करनी चाहिये। इस दिन जो स्त्री अपने सास और ससुर को गुड़ के पुए तथा नमकीन पुए खिलाती है वह गणपति के अनुग्रह से सौभाग्यवती होती है। पति की कामना करनेवाली कन्या विशेषरूप से इस चतुर्थी का व्रत करे और गणेशजी की पूजा करे।
🦅 गरुड़पुराण के अनुसार•••
“सोमवारे चतुर्थ्यां च समुपोष्यार्चयेद्गणम्। जपञ्जुह्वत्स्मरन्विद्या स्वर्गं निर्वाणतां व्रजेत् ॥”
अर्थात~ सोमवार, चतुर्थी तिथि को उपवास रखकर व्रती को विधि – विधान से गणपतिदेव की पूजा कर उनका जप, हवन और स्मरण करना चाहिये । इस व्रत को करने से उसे विद्या, स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्त होता है।
📘 शिवपुराण के अनुसार•••
“वर्षभोगप्रदा ज्ञेया कृता वै सिंहभाद्रके”
अर्थात~जब सूर्य सिंह राशि पर स्थित हो, उस समय भाद्रपदमास की चतुर्थी को की हुई गणेशजी की पूजा एक वर्ष तक मनोवांछित भोग प्रदान करती है।
☝🏻 इस वर्ष गणेश चतुर्थी पर शुक्रवार है और शिवपुराण के अनुसार शुक्रवार वो विघ्नराज गणेश की पूजा विशेष फलदायक है।
विघ्नेशपूजया सम्यग्भूर्लोकेऽभीष्टमाप्नुयात् ।
शुक्रवारे चतुर्थ्यां च सिते श्रावणभाद्रके ॥
🔥अग्निपुराण अध्याय ३०१ के अनुसार•••
पूजयेत्तं चतुर्थ्याञ्च विशेषेनाथ नित्यशः ॥
श्वेतार्कमूलेन कृतं सर्व्वाप्तिः स्यात्तिलैर्घृतैः ।
तण्डुलैर्दधिमध्वाज्यैः सौभाग्यं वश्यता भवेत् ॥
अर्थात~ गणेशजी की नित्य पूजा करें, किंतु चतुर्थी को विशेष रूप से पूजा का आयोजन करें। सफ़ेद आक की जड़ से उनकी प्रतिमा बनाकर पूजा करें। उनके लिए तिल की आहुति देने पर सम्पूर्ण मनोरथों की प्राप्ति होती है। यदि दही, मधु और घी से मिले हुए चावल से आहुति दी जाय तो सौभाग्य की सिद्धि एवं व शित्व की प्राप्ति होती है।
☝🏻 गणेश जी को मोदक (लड्डू), दूर्वा घास तथा लाल रंग के पुष्प अति प्रिय है। गणेश अथर्वशीर्ष में कहा गया है•••
“यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति”
अर्थात~ जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का यजन करता है
वह कुबेर के समान हो जाता है।
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“यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छित फलमवाप्रोति”
अर्थात~ जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा यजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है।
📘 शिवपुराण रुद्रसंहिता के अनुसार••• माँ पार्वती ने गणेश को वरदान दिया है—-
लोगों के द्वारा तुम सदा सिन्दूर से पूजित होओगे। जो मनुष्य पुष्प, चन्दन, सुगन्धित द्रव्य, उत्तम नैवेद्य, विधिपूर्वक आरती, ताम्बूल, दान, परिक्रमा तथा नमस्कार विधान से तुम्हारी पूजा करेगा, उसे सम्पूर्ण सिद्धि प्राप्त होगी, इसमें सन्देह नहीं। इतना ही नहीं तुम्हारे पूजन से समस्त विघ्न भी निःसन्देह विनष्ट हो जायँगे ॥
तस्मात्त्वं पूजनीयोसि सिन्दूरेण सदा नरैः ॥
पुष्पैर्वा चन्दनैर्वापि गन्धेनैव शुभेन च ।
नैवेद्ये सुरम्येण नीराजेन विधानतः ॥
तांम्बूलैरथ दानैश्च तथा प्रक्रमणैरपि ।
नमस्कारविधानेन पूजां यस्ते विधास्यति ॥
तस्य वै सकला सिद्धिर्भविष्यति न संशयः ।
विघ्नान्यनेकरूपाणि क्षयं यास्यंत्यसंशयम् ॥
👉🏻 रविवार अथवा मंगलवार से युक्त गणेश चतुर्थी, गणेश चतुर्थी रविवार तथा मंगलवार को अतिश्रेष्ठ है। निर्णयामृत में वाराह ने कहा है कि – भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी भौमवार या रविवार से युक्त हो तो अतिउत्तम है। उसमें विघ्नेश्वर का अर्चन करने से मनुष्य को इच्छित फल मिलता है।
यथा•••
इयं रविभौमयोरतिप्रशस्ता। भाद्रशुक्लचतुर्थी या भौमेनार्केंण वा युता ।
महती सात्र विघ्नेशमर्चित्वेष्टं लभेन्नरः ॥
इति निर्णयामृते वाराहोक्तेः
☝🏻 चन्द्र दर्शन वर्जित•••
गणेश चतुर्थी के दिन, चन्द्र दर्शन वर्जित होता है, इस दिन चन्द्र दर्शन करने से व्यक्ति पर झूठे कलंक लगने की आंशका रहती है। भगवान श्री कृष्ण को भी चंद्र दर्शन का मिथ्या कलंक लगने के प्रमाण हमारे शास्त्रों में विस्तार से वर्णित हैं।
यथा•••
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#भाद्रशुक्लचतुथ्र्यायो_ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपिवा ।
#अभिशापीभवेच्चन्द्रदर्शनाद्भृशदु:खभाग्॥
अर्थात~ जो जानबूझ कर अथवा अनजाने में ही भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करेगा, वह अभिशप्त होगा।
उसे बहुत दुःख उठाना पडेगा।
☝🏻 चंद्र दर्शन दोष निवारण•••
👉🏻 यदि भूल से चंद्र दर्शन हो जाये तो उसके निवारण के निमित्त•••
श्रीमद्भागवत के १०वें स्कंध, ५६-५७वें अध्याय में उल्लेखित स्यमंतक मणि की चोरी कि कथा का श्रवण करना लाभकारक हैं। जिससे चंद्रमा के दर्शन से होने वाले मिथ्या कलंक का ज्यादा खतरा नहीं होगा।
यथा•••
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#मासि_भाद्रपदे_शुक्ले_चतुर्थ्यां_चंद्रदर्शनम् ।
#मिथ्याभिदूषणं_प्राहुस्तस्मात्तत्परिवर्जयेत् ॥
#प्राप्यते_दर्शनं_तत्र_चतुर्थ्यां_शीतगोर्नरः।
#स्यमंतस्य_कथां_श्रुत्वा_मिथ्यावादात्प्रमुच्यते।।
🔰 व्रतराज के अनुसार••• जो मनुष्य भाद्रपद शुक्ल द्वितीया के चंद्र दर्शन करता रहेगा, उसको भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र दर्शन का दोष नहीं लगता
यथा•••
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#नासादौ_पूर्वमेव_त्वां_ये_पश्यन्ति_सदा_जनाः॥
#भद्रा_(द्वितीया)_यां_शुक्लपक्षस्य_तेषां_दोषो_न_जायते॥
#तदाप्रभृति_लोकोऽयं_द्वितीयायां_कृतादरः॥
#पुनरेव_तु_पप्रच्छ_कलावान्_गणनायकम् ॥
☝🏻 व्यक्ति को निम्नलिखित मंत्र से पवित्र किया हुआ जल ग्रहण करना चाहिये। मंत्र का २१, ५४ या १०८ बार जप करे। ऐसा करने से वह तत्काल शुद्ध हो निष्कलंक बना रहता हैं।
मंत्र – “सिंहः प्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः ॥”
अर्थात~ सुंदर सलोने कुमार! इस मणि के लिये सिंह ने प्रसेन को मारा हैं और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया हैं, अतः तुम रोऒ मत। अब इस स्यमंतक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार हैं।
आचार्य नारायण दीक्षित नेमीशरण सीतापुर
🚩 हर हर महादेव 🚩