संवैधानिक संस्थाओं का टकराव मुख्य सूचना आयुक्त ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बताया असंवैधानिक
मुख्य सूचना आयुक्त ने मामू को दिए जाने वाले वेतन को असंवैधानिक करार दिया कहा कि यह संविधान की धारा 27 का सीधा उल्लंघन है संविधान दिवस पर संवैधानिक संस्था को संवैधानिक तरीके से किया कटघरे में खड़ा
नई दिल्ली देश के मुख्य सूचना आयुक्त बाई के सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट को उसके एक फैसले के लिए कटघरे में खड़ा कर दिया है उन्होंने कहा है कि 1993 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मस्जिदों के इमामो को वेतन दिए जाने का फैसला संवैधानिक नहीं है सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश संविधान की धारा 27 का सीधा उल्लंघन है करदाताओं के द्वारा जुटाए गए धन को सरकार राष्ट्र निर्माण में लगाती हैं ना कि संप्रदाय विशेष के उपयोग में उनका यह बयान दिल्ली सरकार द्वारा मस्जिदों के इमाम को दिए जाने वाले वेतन के केस में सुनवाई के दौरान आया
इससे पहले संविधान दिवस की पूर्व संध्या पर प्रशांत भूषण सहित अन्य जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया था जिस पर अटॉर्नी जनरल और याचिकाकर्ताओं की वकीलों के बीच तीखी बहस सुनने को मिली इससे पूर्व नवंबर 2016 मैं हुई नोटबंदी पर एक अन्य जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर कुछ सवाल दागे थे जिस पर अटॉर्नी जनरल ने जवाब देते हुए कहा नीतिगत फैसले के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी करना आवश्यक था नोटबंदी से काले धन एवं जाली मुद्रा पर काफी हद तक काबू पाया गया उन्होंने सुनवाई करने वाली संवैधानिक पीठ के समक्ष कहा कि कोर्ट ऐसी किसी जनहित याचिका पर विचार ना करें जो सुगमता से अमल में ना लाया जा सकता ह कोर्ट क्या अपने आदेश से घड़ी की सुईओ को पीछे करवा सकती है
संवैधानिक संस्थानों का एक टकराव लोकतंत्र के लिए कदापि अच्छा नहीं है मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के न्यायाधीशों ने जैसी टिप्पणियां की और केंद्र सरकार से जो सवाल पूछे क्या उसकी आवश्यकता थी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से संबंधित जो प्रक्रिया है वहीं परिपाटी पूर्व सरकारों के समय काल से चली आ रही है इसी के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति होती रही लेकिन भारत में चुनाव आयोग को लेकर चुनावी प्रक्रिया एवं चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के परस्पर संबंध को लेकर कभी कोई उंगली नहीं उठाई क्योंकि इन्हीं चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के पश्चात सत्तारूढ़ दल चुनाव हारे भी हैं और जीते भी है ऐसा लंबे समय से होता चला रहा है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि उनकी नियुक्ति को लेकर कोई पक्षपात किया गया हो लेकिन हां नियुक्ति को लेकर प्रक्रिया में सुधार की गुंजाइश दो हमेशा रही है इस आधार पर सुझाव जरूर सजाए जा सकते हैं जहां तक कॉलेजियम की बात है तू सुप्रीम कोर्ट के माननीय के चयन प्रक्रिया को भी लेकर सवाल उठते रहे हैं सन 2014 मैं केंद्र सरकार के कानून मंत्री रवि प्रसाद ने न्यायाधीशों के चयन प्रक्रिया को कोलेजियम से निकालकर सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाते हुए न्यायपालका भर्ती अधिनियम बनाया था जिसको की माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार देते हुए न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया को कॉलेजियम के ही हवाले रहने दिया जिस पर की सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का ही वर्चस्व रहा है 26 नवंबर 2022 को संविधान दिवस के उपलक्ष में हुए प्रोग्राम में शामिल होते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने स्वयं कोलेजियम व्यवस्था को और पारदर्शी बनाने की बात कही थी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में न्यायाधीशों का चयन कोलेजियम व्यवस्था के तहत किया जाता है न्यायाधीशों के चयन का अधिकार सुप्रीम कोर्ट ने नरसिम्हा राव सरकार के समय में एक फैसले के माध्यम से अपने हाथों में ले लिया था और तभी से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों का चयन एक विशेष कॉलेजियन के माध्यम से किया जाने लगा सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार के प्रति आक्रामक रुख अचानक नहीं हुआ है बल्कि यह उस बयान की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है जिसमें वर्तमान कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कॉलजियम व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की वकालत करते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के भीतर भी राजनीतिक विचारधाराएं पनपती है
कारण चाहे जो रहा हो जब देश आजादी का अमृत काल मना रहा हो तो ऐसे समय में संवैधानिक संस्थाएं को अपने लोकतांत्रिक मूल्यों का भी ध्यान रखना होगा और सरकारों एवं राजनीतिक दलों को भी कार्यकाल पूरा कर चुके माननीय को रिवरया खिलाने से बचना होगा जो किसी संवेदनशील मुद्दे को लेकर राष्ट मे अपनी निष्पक्ष एवं बेवाक फैसला सुना चुके हो क्योंकि लोकतंत्र को बनाना और संविधान की मर्यादा रखना हम सभी का कर्तव्य है
जितेंद्र गुप्ता(mediawithyou)