December 4, 2024 |

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उत्तर प्रदेश में घरेलू कलह के चलते बीमार हो रहीं बहुएं, 25 फ़ीसदी महिलाएं बीमारियों को छुपाकर बनती है रोगी

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आमतौर पर देखा गया है घरों में पारिवारिक कलह और रिश्तेदारों खासतौर पर सास-ननद के तानों से बहुएं बीमार हो रही हैं। पढ़ने में भले ही यह बेहद हैरानी भरा लगे, लेकिन सिर, पीठ और कमर दर्द जैसी समस्याओं के चलते बड़ी संख्या में विवाहिताओं को अस्पताल पहुंचना पड़ रहा है।

यह रोचक तथ्य हाल में केजीएमयू न्यूरोलॉजी विभाग के ओपीडी में आई 400 से अधिक महिलाओं पर किए गए सर्वे में सामने आया है। डॉक्टरों के मुताबिक यह ऐसी समस्या है, जिसका समाधान बातचीत और आपसी सामंजस्य से निकल सकता है। डॉक्टरों के मुताबिक कई मामलों में इलाज के बावजूद मरीजों का मर्ज दूर नहीं हो रहा है।

न्यूरोलॉजी विभाग की ओपीडी में आईं 25 से 40 साल की महिलाओं पर यह सर्वे किया गया। इसमें डॉक्टरों ने इलाज के दौरान महिलाओं से कई तरह की जानकारियां दीं। न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. आरके गर्ग ने बताया कि ओपीडी में आईं 40 फीसदी महिलाओं ने खुद की बीमारी के लिए घरेलू कलह, सास-ननद के तानों को वजह बताया, जबकि 35 फीसदी महिलाएं हारमोनल और अन्य दिक्कतों के कारण बीमार मिलीं।

अधिक सदस्यों का खाना बनाना और बर्तन धुलना भी बना मुसीबत

सबसे ज्यादा महिलाओं ने परिवार के अधिक सदस्यों का खाना बनाने में दिक्कत बताई। बहुओं ने बताया कि खाना बनाने में सास और ननद का सहयोग नहीं मिलने से तनाव की स्थिति बनी। इससे सिर दर्द होने लगा। किचन में खड़े होकर भोजन पकाने और बर्तन धुलने की वजह से कमर में दर्द की समस्या पनपी।

मानसिक रोग विशेषज्ञ, डॉ. देवाशीष शुक्ला ने कहा कि परिवार के सभी सदस्यों को मिलकर काम करने की जरूरत है। ज्यादा काम है तो निपटारे के लिए आपस में बात करें। तनाव से स्थिति बिगड़ती है। ऐसी महिलाओं को काउंसलिंग की भी जरूरत है। लविवि, समाजशास्त्र विभाग के डॉ. पवन मिश्र ने कहा कि सोशल मीडिया के युग में बहुएं खुद को ढाल नहीं पाती हैं, जिस तरह 20-25 साल पहले सास ढल जाती थीं। आज महिलाएं एकाकी परिवार चाहती हैं। धैर्य-समझदारी से ऐसी दिक्कतों से निजात मिलेगी।

डॉ. गर्ग का कहना है कि 25 फीसदी ऐसी महिलाएं थी, जिन्होंने बीमारी का बहाना बताया। इनकी पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी जांच रिपोर्ट सभी सामान्य पाई गईं। बीमारी सिर और पीठ दर्द के अलावा दूसरा लक्षण नहीं था। कई दवाएं देने पर भी राहत नहीं मिली। 30 फीसदी महिलाएं डेढ़ से दो माह के इलाज में पूरी तरह से फिट हो गईं।


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