प्रयागराज 27 दिसंबर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार व उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को आपराधिक केस में आरोपी या सजायाफ्ता किसी भी व्यक्ति को वकालत का लाइसेंस देने पर रोक लगाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि बार काउंसिल आवेदन फॉर्म में ही दर्ज अपराध के खुलासे की प्रक्रिया अपनाएं। लाइसेंस जारी करने से पहले पुलिस से रिपोर्ट ली जाए। तथ्य छिपाकर लाइसेंस लेने का खुलासा होने पर आवेदन निरस्त कर दिया जाए।
कोर्ट ने यह आदेश 14 आपराधिक केसों का इतिहास और चार केस में सजायाफ्ता विपक्षी को वकालत का लाइसेंस देने के खिलाफ शिकायत पर बार काउंसिल द्वारा निर्णय लेने में देरी को देखते हुए दिया है। कोर्ट ने विपक्षी जय कृष्ण मिश्र के खिलाफ याची की शिकायत को तीन माह में निस्तारित करने का निर्देश बार काउंसिल को दिया है। कोर्ट ने कहा है कि ऐसे लोगों को वकालत का लाइसेंस दिया जाता रहा तो यह विधि व्यवसाय ही नहीं समाज के लिए भी यह नुकसानदायक होगा। कोर्ट ने आवेदन में खुलासे की प्रक्रिया को लंबित व दाखिल होने वाले सभी आवेदनों पर लागू करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह तथा न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने अधिवक्ता पवन कुमार दुबे की याचिका पर दिया है।
याचिका पर अधिवक्ता सुरेश चंद्र द्विवेदी ने बहस की। इनका कहना था कि विपक्षी अधिवक्ता का आपराधिक इतिहास है और सजायाफ्ता है फिर भी बार काउंसिल ने उसे लाइसेंस दे दिया है। इसके खिलाफ याची की 25 सितंबर 22 को की गई शिकायत पर कोई निर्णय नहीं लिया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को लाइसेंस देने पर एडवोकेट एक्ट में प्रतिबंधित किया गया है।
कोर्ट ने बार काउंसिल से कहा कि वह लाइसेंस देने की प्रक्रिया में संबंधित थाने की पुलिस रिपोर्ट भी शामिल करे। साथ ही आवेदन में दर्ज अपराध का खुलासा अनिवार्य किया जाए। तथ्य छिपाने पर आवेदन निरस्त कर दिया जाए। बार काउंसिल ने अभी तक ऐसी प्रक्रिया नहीं अपनाई है।