भारतीय संविधान की प्रकृति संघात्मक प्रकृति का है डॉक्टर बी आर अंबेडकर जिन्हें भारतीय संविधान का जनक माना जाता है या उनका विचार था, विश्व के संविधानओं की तुलना में भारतीय संविधान वृहद संविधान हैं इस संविधान में प्रशासन से संबंधित सभी प्रावधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व मौलिक अधिकार मौलिक कर्तव्य राज्य तथा केंद्र के शासन से संबंधित प्रावधान नए ढांचे की पदसोपानआत्मक व्यवस्था इत्यादि का संपूर्ण विवरण दिया गया है यह वृहद हो गया है क्योंकि यह पूर्ण दस्तावेज है, मजबूत शक्तिशाली केंद्र के साथ संघवाद का स्थापित किया जाना भारतीय संविधान केंद्र तथा राज्य के मध्य अनोखे संघवाद संबंध की स्थापना करता है संघवाद इकाई स्थापित करते हुए केंद्र को अधिक मजबूत बनाया गया है इस संघवाद की अवधारणा के अंतर्गत केंद्र तथा राज्यों को अपने-अपने विषयों पर जिन्हें की संविधान के द्वारा उन्हें आवंटित किया गया है विधि निर्माण करने की शक्ति प्रदान की गई हैं तथा वे अलग-अलग शासन संचालित कर सकते हैं परंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में शक्तियां जिन्हें पृथक कर दिया गया है केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजय भारतीय संविधान में ऐसे प्रावधानों का उल्लेख किया गया है जिससे आकस्मिक परिस्थितियों में उत्पन्न होने वाली आकस्मिकता से निपटा जा सकता है आकस्मिकता से संबंधित प्रावधान अनुच्छेद 352 356 तथा 360 के अंतर्गत समाहित किए गए हैं जो आकस्मिकता से निपटने के लिए केंद्र को सशक्त बना देते हैं
मौलिक अधिकारों की अवधारणा भारतीय संविधान के भाग 3 अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक में समाहित की गई हैं मौलिक अधिकार अधिकार होते हैं जो एक मानव प्राणी के स्वस्थ वातावरण में आधारभूत तथा सर्वांग पूर्ण विकास हेतु आवश्यक अपरिहार्य तथा प्रकृतितह वंचित होते हैं संविधान का भाग 3 एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को राज्य के विरुद्ध संरक्षित करता है यह व्यक्ति को राज्य के द्वारा निर्मित मनमानी विधियों से संरक्षित करने की प्रत्याभूत प्रदान करता है यह प्रत्याभूत मौलिक अधिकारों के माध्यम से राज्य द्वारा निर्मित मनमानी विधि अथवा किए गए कृत्य से संरक्षित होती हैं व्यक्ति अनुच्छेद 32 तथा 226 की सहायता मौलिक अधिकारों के भंग हो जाने पर प्राप्त कर सकते हैं {jayendra pandey Advocate}